[raipur] - जोत के परंपरा अउ परभाव
छत्तीसगढ़ म जोत ह सक्ति के पहचान आय। सुभ, मंगल के चिन्हारी आय। एहू जुन्ना रीत-रिवाज आय कि संसार म जतका जगा सक्तिपीठ अउ सिद्धपीठ हे उहां जोत जलाय जाथे। सरलग जोत जलत रहे वोकर घलो परमान मिलथे। जइसे नवरात पाख म तो घर-घर, परिवार म अपन सरधा-भक्ति के अनुसार साफ-सफई करके पबरित जोत जलाय जाथे, स्थापित करे जाथे।
धारमिक जगा, सक्तिपीठ अउ सिद्धपीठ म मुख्य जोत परज्वलन चकमक पथरा के तेज रगड़ ले निकले चिंगारी से होथे। फेर, जोत से जोत महुरत के मुताबिक जलाय जाथे। पहिली माटी के कलस बना के जोत जलाय जाय। फेर अब महंगई के सेती तांबा के कलस म जोत जलाथें। नवरातभर चौबीस घंटा सरलग जोत जलथे। वइसे बछर म चार नवरात होथे, फेर चइत अउ कुंवार नवरात म जोत कलस स्थापना होथे।...
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